लईक के “लेख” ✍️
प्रयागराज का सदियापुर मोहल्ला आम दिनों में गहमागहमी से भरा रहता था। गलियों में बच्चों की चहक, औरतों की आहट, चाय की दुकानों पर बहस—सब कुछ सामान्य था!मगर 26 अगस्त की सुबह से यह इलाका अजीब-सी खामोशी में डूबा हुआ था।गली के एक पुराने घर में 65 वर्षीय सरण सिंह बैठा था। चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ और आंखों में अजीब-सी चमक थी!
उसकी दुनिया पहले ही टूट चुकी थी—2023 में बेटी ने फांसी लगाई थी, 2024 में बेटा यमुना में कूद गया था। अब सिर्फ अकेलापन, टूटे रिश्ते और गहरा अंधविश्वास बचा था।तांत्रिक व अंधविश्वास का प्रवेश कुछ ही महीनों पहले सरण सिंह की मुलाक़ात एक तांत्रिक से हुई थी।

उसने धुंधली रोशनी में बैठकर कहा था—”तेरे घर की बर्बादी तेरी भाभी के जादू-टोने की वजह से है। उसका बदला लिए बिना तेरे पाप धुलेंगे नहीं।”सरण सिंह जैसे टूटा हुआ आदमी इस झूठे वाक्य को सच मान बैठा। उसके भीतर बदले की आग भड़कने लगी।जिसका निशाना बना मासूम प्रियांशु जो इसी मोहल्ले में रहता था 17 साल का प्रियांशु सिंह।

वह ग्यारहवीं कक्षा का छात्र, था जो हमेशा हंसता-खेलता और स्कूल जाने को तैयार रहता था! 26 अगस्त को वह रोज़ की तरह यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल निकला। मगर उस दिन वह घर लौटकर कभी नहीं आया।परिवार ke लोगो ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने मे दर्ज कराई, माँ रो-रोकर बेहाल हो गई थी,
लेकिन किसी को अंदेशा भी न था कि खतरा घर के भीतर ही मंडरा रहा है।26 अगस्त का खौफ नाक सच उस दिन सरण सिंह ने प्रियांशु को अपने घर बुलाया। अंदर कमरे में पहले से ही आरी और चापड़ रखे हुए थे।वह तंत्र-मंत्र के नशे और बदले की आग में इतना अंधा हो चुका था कि खून का रिश्ता तक भूल गया।

कमरे से अचानक चीख सुनाई दी—”दादा! मुझे छोड़ दो… दादा प्लीज़!”लेकिन उसकी चीख बाहर तक नहीं पहुंची। उस घर की दीवारें उस रात खून से लाल हो गईं।टुकड़ों में बटा बचपन सरण सिंह ने अपने बड़े भाई के पोते प्रियांशु का सिर और हाथ-पैर काट दिए।उसने प्रियांशु सिंह के खून से लथपथ टुकड़े पॉलिथीन में पैक किए। आधी रात को स्कूटी पर बैठा और एक-एक करके शव के हिस्से लवायन कुरिया गाँव के नाले में फेंक आया।
अंधविश्वास और हैवानियत ने एक मासूम का बचपन टुकड़ों में बाँट दिया।सच का पर्दाफाशसुबह खबर आई कि औद्योगिक क्षेत्र के नाले में मानव अंग पड़े हैं।जिस पर पुलिस ने जांच शुरू की। आसपास के सीसीटीवी खंगाले गए।
फुटेज में दिखा—एक बूढ़ा आदमी स्कूटी से कुछ फेंक रहा है। आज भी अंधविश्वास अपने चरम पर है कई लोगों का घर इसी कारण नष्ट हुआ है
स्कूटी का नंबर ट्रेस किया तथा पता लगने के बाद उसके घर जाकर घर का दरवाज़ा खटखटाते ही सच बाहर आ गया।सरण सिंह की आंखों से पश्चाताप के आँसू नहीं, बल्कि वही पागलपन झलक रहा था—”मैंने अपने पोते को मारा… मुझे बदला लेना था।”पुलिस की जाँचडीसीपी नगर अभिषेक भारती के नेतृत्व में पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर शव के अन्य अंग बरामद किए।
वही आरी और चापड़ भी मिल गए, जिससे यह कृत्य किया गया था।अब पूरा शहर कांप रहा था। तांत्रिक की तलाश में कई टीमें लगी थीं। मगर सबसे बड़ा सवाल लोगों के दिल में गूंज रहा था—
क्या वाकई कोई जादू-टोना था, या सिर्फ एक टूटा हुआ आदमी अंधविश्वास की भेंट चढ़ गया?अंधविश्वास का काला साया?सदियापुर का वह घर अब वीरान हो गया है। लोग गुजरते हैं तो धीमी आवाज़ में कहते हैं—
“यहाँ कभी एक दादा ने अपने ही पोते को तंत्र-मंत्र के लिए टुकड़ों में काट डाला था।”और गली के कोने पर बैठा कोई बूढ़ा धीरे से जोड़ देता है—”अंधविश्वास इंसान को पहले भीतर से मारता है, फिर उसके अपने ही हाथ से कत्ल कराता है।”
कहा है तांत्रिक? अंधविश्वास की भेंट बहुत से लोग आज भी चढ़ जाती जिसका मुख्य कारण किसी से बदला लेना या लोगों की बात में आ जाना है हम यह भूल जाते हैं कि हमें दूसरों की बातों में भरोसा नहीं करना चाहिए









